Sai SatCharitra

Wednesday, 18 March 2020

💐आज ही जीए जिंदगी.💐

एक फ़कीर नदी के किनारे बैठा था किसी ने पूछा  
'बाबा क्या कर रहे हो?' फ़कीर ने कहा :
'इंतज़ार कर रहा हूँ की पूरी नदी बह जाएं
तो फिर पार करूँ' उस व्यक्ति ने कहा :
'कैसी बात करते हो बाबा पूरा जल बहने 
के इंतज़ार मे तो तुम कभी नदी पार ही नही
कर पाओगे' फ़कीर ने कहा "यही तो मै तुम
लोगो को समझाना चाहता हूँ की तुम लोग
जो सदा यह कहते रहते हो की एक बार जीवन 
की ज़िम्मेदारियाँ पूरी हो जाये तो
मौज करूँ, घूमूँ फिरू, सबसे मिलूँ, सेवा
करूँ... जैसे नदी का जल खत्म नही होगा
हमको इस जल से ही पार जाने का रास्ता
बनाना है इस प्रकार जीवन खत्म हो जायेगा 
पर जीवन के काम खत्म नही होंगे."

*बहुत प्यारा सन्देश*


कभी आपको बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने का मौका लगा है l यदि नही ; तो कभी गौर करना  l और हाँ ; तो आपने महसूस किया होगा कि  पीछे की सीट पर धक्के ज्यादा महसूस होते है l चालक तो सबके लिए एक ही है l बस की गति भी समान है l फिर ऐसा क्यों ? साहब जिस बस में आप सफर कर रहे है उसके चालक से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी - आपकी यात्रा में धक्के भी उतने ही ज्यादा होंगे l
 आपकी जीवन यात्रा के सफर में भी जीवन की गाड़ी के चालक *परमात्मा* से आपकी दूरी जितनी ज्यादा होगी आपको ज़िन्दगी में *धक्के* उतने ही ज्यादा खाने पड़ेंगे l अपनी रोज़ की दिनचर्या में यथासंभव कुछ समय अपने *आराध्य* के समीप बैठो और उनसे अपने मन की बात एकदम साफ शब्दों में कहो l आप स्वयं एक अप्रत्याशित चमत्कार महसूस करेंगे।
कोशिश करके देखिए  
🙏🏻🌹

🔊 आओ कहानी सुने 📢



।।।   सत्संग का असर क्यों नहीं होता   ।।।
सत्संग के वचन को केवल कानों से नही, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनो का सम्मान है ।
एक शिष्य अपने गुरु जी के पास आकर बोला:-
"गुरु जी हमेशा लोग प्रश्न करते है कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता ?
मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है ।"
गुरु जी समयज्ञ थे बोले:- "वत्स जाओ, एक घडा मदिरा ले आओ ।"
शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही आवाक् रह गया ।
"गुरू जी और शराब" वह सोचता ही रह गया ।
गुरू जी ने कहा:- "सोचते क्या हो, जाओ एक घडा मदिरा ले आओ ।"
वह गया और एक छला-छल भरा मदिरा का घडा ले आया ।
गुरु जी के समक्ष रख बोला:- “आज्ञा का पालन कर लिया ।"
गुरु जी बोले :- “ यह सारी मदिरा पी लो ”
शिष्य अचंभित, गुरु जी ने कहा:- "शिष्य, एक बात का ध्यान रखना, पीना पर शीघ्र कुल्ला थूक देना, गले के नीचे मत उतारना ।"
शिष्य ने वही किया, शराब मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते-देखते घडा खाली हो गया ।
फिर आकर गुरु जी से कहा:- “गुरुदेव घडा खाली हो गया ।"
गुरु जी ने पूछा:- "तुझे नशा आया या नहीं ?”
शिष्य बोला:- "गुरुदेव, नशा तो बिल्कुल नहीं आया ।"
गुरु जी बोले:- "अरे मदिरा का पूरा घडा खाली कर गये और नशा नहीं चढा ?"
शिष्य ने कहा:- “गुरुदेव नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती, गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फ़िर नशा कैसे चढता ?
अब गुरु जी ने समझाया:- ”बस फिर सत्संग को भी उपर उपर से जान लेते हो, सुन लेते हों गले के नीचे तो उतरता ही नहीं, व्यवहार में आता नहीं तो प्रभाव कैसे पडे ।"
सत्संग के वचन को केवल कानों से नही, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनो का सम्मान है ।
पांच पहर धंधा किया, तीन पहर गए सोए ।
एक घड़ी ना सत्संग किया, तो मुक्ति कहाँ से होए ॥
🙏🏻🌹