Sai SatCharitra

Tuesday 9 May 2017

स्त्री का प्रेम

स्त्री वर्षों प्रेम कर सकती है बिना कामवासना की मांग किए। सच तो यह है कि जब स्त्री बहुत गहरा प्रेम करती है, तो उस बीच पुरुष की कामवासना की मांग उसको धक्का ही देती है, शॉक ही पहुंचाती है। उसे एकदम खयाल भी नहीं आता कि इतने गहरे प्रेम में और कामवासना कीमांग की जा सकती है!मैं सैकड़ों स्त्रियों को, उनके निकट, उनकी आंतरिक परेशानियों से परिचित हूं। अब तक मैंने एक स्त्री ऐसी नहीं पाई, जिसकी परेशानी यह न हो कि पुरुष उससे निरंतर कामवासना की मांग किए चले जाते हैं। और हर स्त्री परेशान हो जाती है। क्योंकि जहां उसे प्रेम का आकर्षण होता है, वहां पुरुष को सिर्फ काम का आकर्षण होता है। और पुरुष की जैसे ही काम की तृप्ति हुई, पुरुष स्त्री को भूल जाता है। और स्त्री को निरंतर यह अनुभव होता है कि उसका उपयोग किया गया है–शी हैज बीन यूज्ड। प्रेम नहीं किया गया, उसका उपयोग किया गया है। पुरुष को कुछ उत्तेजना अपनी फेंक देनी है। उसके लिए स्त्री का एक बर्तन की तरह उपयोग किया गया है। और उपयोग के बाद ही स्त्री व्यर्थ मालूम होती है। लेकिन स्त्री का प्रेम गहन है, वह पूरे शरीर से है, रोएं-रोएं से है।वह जेनिटल नहीं है, वह टोटल है।

~ओशो~