Sai SatCharitra

Thursday 10 August 2017

अभ्यास धर्म नहीं है - ओशो


।। अभ्यास धर्म नहीं है  ।।

साईं, शिरडी के साईं के जीवन में एक उल्लेख है। उनके एक भक्त ने कहा कि अब तो मैं सभी में परमात्मा को देखने लगा हूँ, तो साईं बाबा ने कहा कि अगर तुम सबमें परमात्मा को देखने लगे होते, तो इस भरी दोपहरी में मुझे नमस्कार करने किसलिए आते हो? कहीं भी नमस्कार कर लेना था। अगर मैं ही तुम्हें सब जगह दिखाई पड़ने लगा हूं तो इस भरी दोपहरी में इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी? मैं वहीं तुम्हें मिल जाता, मैं वहीं था।
वह जो भक्त था, रोज भोजन लेकर आता था बाबा के लिए। और जब तक वे भोजन न कर लेते, तब तक वह खुद भी भोजन नहीं करता था।
तो साईं बाबा ने कहा, कल से अब तुम भोजन लेकर मत आना, मैं वहीं आ जाऊंगा। तुम मुझे पहचान लेना, क्योंकि तुम्हें दिखाई पड़ने लगा है! वह भक्त बडी मुश्किल में पड़ा। भोजन की थाली लगाकर वह अपने द्वार के वृक्ष के नीचे बैठ गया। अब वह प्रतीक्षा कर रहा है। और एक कुत्ता उसे परेशान करने लगा। भोजन की सुगंध, वह कुत्ता बार—बार आने लगा। और वह डंडे से कुत्ते को मार—मारकर भगाने लगा। वक्त बीतने लगा और साईं बाबा का कुछ पता नहीं, तो फिर वह थाली लेकर पहुंचा उस #मस्जिद में, जहां साईं बाबा रहते थे।
अंदर गया, तो देखा कि साईं बाबा की आंख से आंसू बह रहे हैं। तो पूछा कि आप आए नहीं? और मैं राह देखता रहा। साईं बाबा ने कहा, मैं आया था। मेरी पीठ देख! पीठ पर उसकी लकड़ी के निशान थे, जो उसने कुत्ते को लकड़ियां मारी थीं। मैं आया था। तू तो कहता था, सबमें तू देखने लगा, इसलिए मैंने सोचा, किसी भी शक्ल में जाऊंगा, तू पहचान लेगा। तो मैं कुत्ते की शक्ल में आया था। उस भक्त ने कहा, जरा भूल हो गई। ऐसे तो मैं सबमें आपको देखने लगा हूं लेकिन जरा कुत्ते में देखने का अभी अभ्यास नहीं है। अब आइएगा, बराबर पहचान लूंगा।
फिर दूसरे दिन हुआ वही। लेकिन इस बार कुत्ता नहीं आया, एक कोढ़ी आ गया। और उसने दूर से कहा, दूर रहना! यहां बाबा का भोजन रखा है, अपवित्र मत कर देना! दूर रह, छाया मत डाल देना! लेकिन वह कोढ़ी सुनता ही नहीं है, पास आए चला जाता है। तो वह अपनी थाली लेकर भागा और कोढ़ी उसके पीछे भाग रहा है। और वह थाली लेकर भाग रहा है साईं बाबा की तरफ।
जब वह भीतर पहुंचा, तो देखा, वहां साईं बाबा नहीं हैं। पीछे लौटकर देखा, तो कोढ़ी की जगह साईं बाबा खड़े हैं। और साईं बाबा ने कहा, लेकिन तू पहचानता ही नहीं है! उसने कहा, नया— नया रोज—रोज अभ्यास करवाते हैं! आज पक्का कर लिया था कि कुत्ते में देखेंगे, और आप कोढ़ी होकर आ गए! कल आइए।
अभ्यास धर्म नहीं है। चेष्टा करके कोई बात दिखाई पड़ने लगे,तो उसका कोई मूल्य नहीं।
गीता दर्शन भाग # 5 ,117
🌻 🌻 ओशो 🌻 🌻