🌻🌻जय श्री सीताराम जी 🌻🌻
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माता सीता ने पूछा-- हनुमान! भूख लगी है, तो रास्ते में कुछ खाने को नहीं मिला, कोई खिलाने वाला नहीं मिला? हनुमान जी ने कहा -- माता ! जितने मिले, सब खाने वाले ही मिले। सुरसा, सिंहिका, लंकिनी सब खाने वाली थीं, खिलाने वाला कोई नहीं मिला। यहाँ लंका में भी सब खाने को तैयार। सीता माता ने कहा- तो तुम कह देते, तुम्हारे राजा से शिकायत कर देंगे । हनुमान ने कहा -- कहा था माता, पर वे बोले-- खूब करो शिकायत, हम तो उन्हीं के सहारे खाते हैं। कहा कैसे? बोले-- हम तो एक ही मुख से खाते हैं, हमारे राजा के तो दस मुख हैं, वे तो दस मुख से खाते हैं। अब जिसका राजा दस मुख से खाता हो, उसके कर्मचारी क्या एक मुख से भी नहीं खायेंगे?
माता सीता ने कहा-- अच्छा छोड़ो। यह बताओ, लंका में तुम आये, तो उछल कूद कर कहीं से भी कुछ खा लेते, यहाँ कौन तुम्हारे लिए भोजन लेकर बैठा है जो कहेगा , पधारो श्रीमान भोजन करो। हनुमान जी ने कहा-- माता ! खा तो लेता , पर हमारे खाने लायक कोई वस्तु लंका में थी ही नहीं
यहाँ तो--
कहिं महिष मानुष धेनु खर अज
खल निसाचर भच्छहीं।
रावण के राज्य में भैंसा, मनुष्य, गाय, गधा, बकरे आदि खाने की खुली छूट है और फलाहार पर पाबंदी है । फल खाने पर रोक लगा रखी है, और यही हमारा भोजन है । यहाँ अशोक वाटिका में पहरेदार बिठा रखे हैं कि खबरदार फलाहार कोई नहीं करेगा। सीता माता ने कहा कि यहाँ तो राक्षस रखवाली कर रहे हैं। हनुमान जी बोले-- माता ! उनकी चिंता नहीं है, अगर आपका आशीर्वाद मिल जाय तो।
देखि बुद्धि बल निपुन कपि
कहेउ जानकी जाहु ।
सीता माता ने बुद्धि और बल देखा, सुरसा ने -- तुम बल बुद्धि निधान- - सुरसा के पास हनुमान जी पहले बड़े थे फिर छोटे हुए, इसलिए बल पहले बुद्धि बाद में और सीता माता के पास पहले छोटे होकर गये बाद में बड़ा रूप दिखाया, इसलिए बुद्धि पहले बल बाद में-- देखि बुद्धि बल निपुन कपि।
सीता माता ने कहा -- तो एक काम करो।•••क्या?
रघुपति चरन हृदय धरि
तात मधुर फल खाहु।।
भगवान के चरणों को हृदय में धारण करो और यही बात हनुमान जी ने भी रावण से कही--
राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राज तुम्ह करहू।।
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माता सीता ने पूछा-- हनुमान! भूख लगी है, तो रास्ते में कुछ खाने को नहीं मिला, कोई खिलाने वाला नहीं मिला? हनुमान जी ने कहा -- माता ! जितने मिले, सब खाने वाले ही मिले। सुरसा, सिंहिका, लंकिनी सब खाने वाली थीं, खिलाने वाला कोई नहीं मिला। यहाँ लंका में भी सब खाने को तैयार। सीता माता ने कहा- तो तुम कह देते, तुम्हारे राजा से शिकायत कर देंगे । हनुमान ने कहा -- कहा था माता, पर वे बोले-- खूब करो शिकायत, हम तो उन्हीं के सहारे खाते हैं। कहा कैसे? बोले-- हम तो एक ही मुख से खाते हैं, हमारे राजा के तो दस मुख हैं, वे तो दस मुख से खाते हैं। अब जिसका राजा दस मुख से खाता हो, उसके कर्मचारी क्या एक मुख से भी नहीं खायेंगे?
माता सीता ने कहा-- अच्छा छोड़ो। यह बताओ, लंका में तुम आये, तो उछल कूद कर कहीं से भी कुछ खा लेते, यहाँ कौन तुम्हारे लिए भोजन लेकर बैठा है जो कहेगा , पधारो श्रीमान भोजन करो। हनुमान जी ने कहा-- माता ! खा तो लेता , पर हमारे खाने लायक कोई वस्तु लंका में थी ही नहीं
यहाँ तो--
कहिं महिष मानुष धेनु खर अज
खल निसाचर भच्छहीं।
रावण के राज्य में भैंसा, मनुष्य, गाय, गधा, बकरे आदि खाने की खुली छूट है और फलाहार पर पाबंदी है । फल खाने पर रोक लगा रखी है, और यही हमारा भोजन है । यहाँ अशोक वाटिका में पहरेदार बिठा रखे हैं कि खबरदार फलाहार कोई नहीं करेगा। सीता माता ने कहा कि यहाँ तो राक्षस रखवाली कर रहे हैं। हनुमान जी बोले-- माता ! उनकी चिंता नहीं है, अगर आपका आशीर्वाद मिल जाय तो।
देखि बुद्धि बल निपुन कपि
कहेउ जानकी जाहु ।
सीता माता ने बुद्धि और बल देखा, सुरसा ने -- तुम बल बुद्धि निधान- - सुरसा के पास हनुमान जी पहले बड़े थे फिर छोटे हुए, इसलिए बल पहले बुद्धि बाद में और सीता माता के पास पहले छोटे होकर गये बाद में बड़ा रूप दिखाया, इसलिए बुद्धि पहले बल बाद में-- देखि बुद्धि बल निपुन कपि।
सीता माता ने कहा -- तो एक काम करो।•••क्या?
रघुपति चरन हृदय धरि
तात मधुर फल खाहु।।
भगवान के चरणों को हृदय में धारण करो और यही बात हनुमान जी ने भी रावण से कही--
राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राज तुम्ह करहू।।
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किसी ने तुलसीदास जी से पूछा कि हनुमान ने स्वयं भगवान के चरणों को हृदय में धारण किया और रावण से भी कहा-- राम चरन पंकज उर धरहू, ऐसा क्यों? तुलसीदास जी ने बहुत अच्छा उत्तर दिया--
हनूमान सम नहिं बड़भागी।
नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।।
हनुमान जी के समान श्रीराम जी के चरणों का अनुरागी कोई नहीं है ।
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई ।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।
🌺श्रीराम जय राम जय जय राम🌺
हनूमान सम नहिं बड़भागी।
नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।।
हनुमान जी के समान श्रीराम जी के चरणों का अनुरागी कोई नहीं है ।
गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई ।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।
🌺श्रीराम जय राम जय जय राम🌺