लम्बे समय के बाद श्री कृष्ण राधा जी से मिले तो राधा जी ने पूछा,"कैसे हो द्वारकाधीश"
जो राधा उनको कान्हा-कान्हा कह कर बुलाती थी। उसके मुख से निकला द्वारकाधीश नाम का तीर उन्हें अन्दर तक घायल कर गया और वह थोड़ा संभलकर बोले,"हे राधे! तुम्हारे लिए तो मैं आज भी कान्हा हूं। तुम क्यों मुझे द्वारकाधीश कहती हो,तुम द्वारकाधीश राजा के नहीं बल्कि उसी मुरली वाले कान्हा के दिल में रहती हो।
इस पर राधा बोली,"अगर तुम कान्हा होते तो सुदर्शन की जगह प्रेम वाली मुरली लेकर आते। अगर कुछ कड़वे सच सुन पाओ तो कान्हा से द्वारकाधीश तक के सफर का एक आइना देखना चाहते हो।जिस उंगली से गोवर्धन उठाकर कान्हा ने हजारों लोगों को बचाया,अब उसी उंगली से सुदर्शन उड़ा कर द्वारिकाधीश ने हजारों लोगों को रुलाया ,एक उंगली से चलने वाले सुदर्शन पर भरोसा कर लिया और दस ऊंगली से चलने वाली मुरलियों को भुला दिया। अरे कान्हा और द्वारिकाधीश में क्या अंतर होता है जानना चाहते हो।"
-तुम सुदामा के घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता।
-अगर तुम कान्हा होते तुम तो सभी शास्त्रों के ज्ञाता हो ,गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो ,पर महाभारत युद्ध में ये क्या कर गए ,अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप और स्वंय को पांडवो के साथ हो लिए ,सेना तो आपकी प्रजा थी और राजा उसका रक्षक होता है लेकिन इस प्रजा का रक्षक उस रथ को चला रहा था, जिस पर बैठा अर्जुन उसकी प्रजा को ही सुला रहा था ,अपनी प्रजा को मरते देख आपमें करुणा जाग जाती।
- अगर तुम कान्हा होते आज भी धरती पर अपनी द्वारिकाधीश वाली छवि को ढूंढ़ते रह जाओगे ,हर घर में हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे ,आज भी लोग तुम्हारी पूजा करते है, गीता का पाठ करते है ,पर लोग युद्ध वाले द्वारिकाधीश पर नहीं, प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं।
- जिस गीता में मेरा दूर-दूर तक भी जिक्र नहीं,आज भी लोग उसके समापन पर राधे-राधे करते है
- कौरवो पांडवो में युद्ध नहीं बल्कि समझौते होते।
[कर्टसी पंजाब केसरी]