Friday 11 March 2016

गहरा प्रेम ~ओशो

~गहरा प्रेम~
अगर तुम बहुत गहरे प्रेम में हो तो तुम मौन हो जाओगे। तब तुम अपनी प्रेमिका से बोल न सकोगे। और यदि बोलोगे भी तो नाम के लिए ही। बातचीत संभव नहीं है। प्रेम जब गहराता है तब शब्द व्यर्थ हो जाते हैं, तुम चुप हो जाते हो। अगर तुम अपनी प्रेमिका के साथ मौन नहीं रह सकते हो तो भलीभांति समझ लो कि प्रेम नहीं है। क्योंकि जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है उसके पास चुप रहना बहुत कठिन होता है। किसी अजनबी के साथ तुम तुरंत बातचीत में लग जाते हो।
अगर तुम रेलगाड़ी या बस से यात्रा कर रहे हो तो तुम तुरंत बातचीत में लग जाते हो। क्‍योंकि अजनबी के बगल में चुप बैठना कठिन मालूम होता है, भद्दा मालूम होता है। और चूंकि कोई दूसरा सेतु नहीं बन पाता इसलिए तुम भाषा का सेतु निर्मित कर लेते हो। अजनबी के साथ आंतरिक सेतु संभव नहीं है। तुम अपने में बंद हो; वह अपने में बंद है। मानो दो बंद घेरे अगल—बगल में बैठे हों। और डर है कि कहीं वे आपस में टकरा न जाएं, कोई खतरा न हो जाए। इसलिए तुम सेतु बना लेते हो, इसलिए तुम बातचीत करने लगते हो, इसलिए तुम मौसम या किसी भी चीज पर बातचीत करने लगते हो, वह कोई भी बेकार की बात हो सकती है। लेकिन उससे तुम्हें एहसास होता है कि तुम जुड़े हो और संवाद चल रहा है।
चूकि प्रेमी मौन हो जाते हैं। और जब दो प्रेमी फिर बातचीत करने लग जाएं तो समझ लेना कि प्रेम विदा हो चुका है, कि वे फिर अजनबी हो गए हैं। जाओ और पति—पत्नियों को देखो, जब वे अकेले होते हैं तो वे किसी भी चीज के बारे में बातचीत करते रहते हैं। और वे दोनों जानते हैं कि बातचीत गैर—जरूरी है। लेकिन चुप रहना कितना कठिन है! इसलिए किसी क्षुद्र सी बात पर भी बात किए जाओ, ताकि संवाद चलता रहे।

लेकिन दो प्रेमी मौन हो जाएंगे। भाषा खो जाएगी; क्योंकि भाषा बुद्धि की चीज है। शुरुआत तो बच्चों जैसी बातचीत से होगी, लेकिन फिर वह नहीं रहेगी। तब वे मौन में संवाद करेंगे। उनका संवाद क्या है? उनका संवाद अतर्क्य है, वे अस्तित्व के एक भिन्न आयाम के साथ लयबद्ध हो जाते हैं। और वे उस लयबद्धता में सुखी अनुभव करते हैं। और अगर तुम उनसे पूछो कि उनका सुख क्या है, तो वे उसे प्रमाणित नहीं कर सकते,अब तक कोई प्रेमी प्रमाणित नहीं कर सका है कि प्रेम में उन्हें सुख क्यों होता है। क्यों? प्रेम तो बहुत पीड़ा, बहुत दुख लाता है, तथापि प्रेमी सुखी है। प्रेम में एक गहरी पीड़ा है। क्योंकि जब तुम किसी से एक होते हो तो उसमें अड़चन आती है। प्रेम में दो मन एक हो जाते हैं; यह केवल दो शरीरों के एक होने की बात नहीं है।
~ओशो~