Wednesday 26 October 2016

*मुहब्बत सी नशीली चाँदनी*,~ *ओशो*(मरो हे जोगी पुस्तक से)


ह्रदय को मोहती है,प्रणय संगीत जैसी
नयन को सोहती है, सपन के मीत जैसी,
तुम्हारे रूप जैसी, वसंती धूप जैसी
मधुस्मृति सी रसीली शरद की चाँदनी है।
चाँदनी खिल रही है तुम्हारे *हास* जैसी,
उमंगें भर रही है मिलन की आस जैसी,
प्रणय की बाँह जैसी, अलक की छाँह जैसी
प्रिये, तुम सी लजीली शरद की चाँदनी‍ है।
हुई है क्या ना जाने अनोखी बात जैसी
भरे पुलकन बदन में प्रथम मधु रात जैस‍ी 
हँसी दिल खोल पुनम, गया अब हार संयम
वचन से भी हठीली शरद की चाँदनी है।
तुम्हारे नाम जैसी, छलकते जाम जैसी
मुहब्बत सी नशीली, शरद की चाँदनी जैसी