Monday 30 April 2018

Thought of the day

When you have gone beyond thinking, and if you can still remain alert, aware, as if one is fast asleep but still alert—deep down at the very core of one’s being a lamp goes on burning, a small candle of light—then you will see your original face. And to see your original face is to be back in the Garden of Eden.
~Osho~

A stray fact: insects are not drawn to candle flames, they are drawn to the light on the far side of the flame, they go into the flame and sizzle to nothingness because they're so eager to get to the light on the other side.
~Michael Cunningham~

This too shall pass~a story


       ~This Too Shall Pass ~
【To Understand This Deeply】
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Once A King Called Upon All Of His Wise Men And Asked Them, ” Is There A Mantra Or Suggestion Which Works In Every Situation, In Every Circumstances, In Every Place And In Every Time. In Every Joy, Every Sorrow, Every Defeat And Every Victory? One Answer For All Questions? Something Which Can Help Me When None Of You Is Available To Advise Me? Tell Me Is There Any Mantra?”All The Wise Men Were Puzzled By The King’s Question. They Thought And Thought. After A Lengthy Discussion, An Old Man Suggested Something Which Appealed To All Of Them. They Went To The King And Gave Him Something Written On Paper, With A Condition That The King Was Not To See It Out Of Curiosity. Only In Extreme Danger, When The King Finds Himself Alone And There Seems To Be No Way, Only Then He Can See It. The King Put The Papers Under His Diamond Ring.Some Time Later, The Neighbors Attacked The Kingdom. King And His Army Fought Bravely But Lost The Battle. The King Had To Flee On His Horse. The Enemies Were Following Him. Getting Closer And Closer. Suddenly The King Found Himself Standing At The End Of The Road - That Road Was Not Going Anywhere. Underneath There Was A Rocky Valley Thousand Feet Deep. If He Jumped Into It, He Would Be Finished…And He Could Not Return Because It Was A Small Road…The Sound Of Enemy’s Horses Was Approaching Fast. The King Became Restless. There Seemed To Be No Way.Then Suddenly He Saw The Diamond In His Ring Shining In The Sun, And He Remembered The Message Hidden In The Ring. He Opened The Diamond And Read The Message. The Message Was – “ THIS TOO SHALL PASS ”The King Read It . Again Read It. Suddenly Something Struck Him- Yes ! This Too Will Pass. Only A Few Days Ago, I Was Enjoying My Kingdom. I Was The Mightiest Of All The Kings. Yet Today, The Kingdom And All My Pleasures Have Gone. I Am Here Trying To Escape From Enemies. Like Those Days Of Luxuries Have Gone, This Day Of Danger Too Will Pass. A Calm Came On His Face. He Kept Standing There. The Place Where He Was Standing Was Full Of Natural Beauty. He Had Never Known That Such A Beautiful Place Was Also A Part Of His Kingdom.The Revelation Of The Message Had A Great Effect On Him. He Relaxed And Forgot About Those Following Him. After A Few Minutes He Realized That The Noise Of The Horses And The Enemy Coming Was Receding. They Moved Into Some Other Part Of The Mountains And Were Nowhere Near Him.The King Was Very Brave. He Reorganized His Army And Fought Again. He Defeated The Enemy And Regained His Empire. When He Returned To His Empire After Victory, He Was Received With Much Fanfare. The Whole Capital Was Rejoicing In The Victory.Everyone Was In A Festive Mood. Flowers Were Being Showered On King From Every House, From Every Corner. People Were Dancing And Singing. For A Moment King Said To Himself, “ I Am One Of The Bravest And Greatest King. It Is Not Easy To Defeat Me. With All The Reception And Celebration He Saw An Ego Emerging In Him.”Suddenly The Diamond Of His Ring Flashed In The Sunlight And Reminded Him Of The Message. He Open It And Read It Again: “ THIS TOO SHALL PASS ”.He Became Silent. His Face Went Through A Total Change - From The Egoist He Moved To A State Of Utter Humbleness. If This Too Is Going To Pass, It Is Not Yours. The Defeat Was Not Yours, The Victory Is Not Yours. You Are Just A Watcher. Everything Passes By. We Are Witnesses Of All This. We Are The Perceivers. Life Comes And Goes. Happiness Comes And Goes. Sorrow Comes And Goes.Now As You Have Read This Story, Just Sit Silently And Evaluate Your Own Life. This Too Will Pass. Think Of The Moments Of Joy And Victory In Your Life. Think Of The Moment Of Sorrow And Defeat. Are They Permanent ? They All Come And Pass Away. Life Just Passes Away. There Is Nothing Permanent In This World. Every Thing Changes Except The Law Of Change. Think Over It From Your Own Perspective. You Have Seen All The Changes. You Have Survived All Setbacks, All Defeats And All Sorrows. All Have Passed Away. The Problems In The Present, They Too Will Pass Away. Because Nothing Remains Forever. Joy And Sorrow Are The Two Faces Of The Same Coin. They Both Will Pass Away.You Are Just A Witness Of Change. Experience It, Understand It, And Enjoy The Present Moment - This Too Shall Pass
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“हनुमान जी की एक कथा'

श्री राम मे आस्था है तो
बंद द्वार में भी रास्ता हैं !!

जय जय श्रीराम
उत्तर रामायण के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने बड़ी सभा का आयोजन कर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, किन्नरों, यक्षों व राजाओं आदि को उसमें आमंत्रित किया।सभा में आए नारद मुनि के भड़काने पर एक राजन ने भरी सभा में ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया।ऋषि विश्वामित्र गुस्से से भर उठे और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पूर्व श्रीराम ने उस राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया तो वो राम को श्राप दे देंगे।इस पर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया। श्रीराम के प्रण की खबर पाते ही राजा भागा-भागा हनुमान जी की माता अंजनी की शरण में गया तथा बिना पूरी बात बताए उनसे प्राण रक्षा का वचन मांग लिया।तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजन की प्राण रक्षा का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्रीराम की शपथ लेकर कहा कि कोई भी राजन का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा परंतु जब राजन ने बताया कि भगवान श्रीराम ने ही उसका वध करने का प्रण किया है तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए कि राजन के प्राण कैसे बचाएं और माता का दिया वचन कैसे पूरा करें तथा भगवान श्रीराम को श्राप से कैसे बचाएं।धर्म संकट में फंसे हनुमानजी को एक योजना सूझी। हनुमानजी ने राजन से सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा। हनुमान जी खुद सूक्ष्म रूप में राजन के पीछे छिप गए। जब राजन को खोजते हुए श्रीराम सरयू तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजन राम-राम जप रहा है।प्रभु श्रीराम ने सोचा,"ये तो भक्त है, मैं भक्त के प्राण कैसे ले लूं"। श्री राम ने राज  भवन लौटकर ऋषि विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही। विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे और जिस पर श्रीराम को फिर से राजन के प्राण लेने हेतु सरयू तट पर लौटना पड़ा। अब श्रीराम के समक्ष भी धर्मसंकट खड़ा हो गयाकि कैसे वो राम नाम जप रहे अपने ही भक्त का वध करें। राम सोच रहे थे कि हनुमानजी को उनके साथ होना चाहिए था परंतु हनुमानजी तो अपने ही आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्मयुद्ध का संचालन कर रहे थे हनुमानजी को यह ज्ञात था कि राम नाम जपते हु‌ए राजन को कोई भी नहीं मार सकता, खुद मर्ययादा पुरुषोत्तम रामभी नहीं। श्रीराम ने सरयू तट से लौटकर राजन को मारने हेतु जब शक्ति बाण निकाला तब हनुमानजी के कहने पर राजन राम-राम जपने लगा ।रामजानते थे राम-नाम जपनने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता।वो असहाय होकर राजभवन लौट गए।विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर श्राप देने कोउतारू हो गएऔर राम को फिर सरयू तट पर जानापड़ा।इस बार राजा हनुमान जी के इशारे पर जय जय सियाराम जय जय हनुमान गा रहा था। प्रभु श्री राम ने सोचा कि मेरे नाम के साथ-साथ ये राजन शक्ति और भक्ति की जय बोल रहा है। ऐसे में कोई अस्त्र-शस्त्र इसे मार नहीं सकता। इस संकट को देखकर श्रीराम मूर्छित हो गए। तब ऋषि व‌शिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में न डालें। उन्होंने कहा कि श्रीराम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योंकि जो बल राम के नाम में है और खुद राम में नहीं है। संकट बढ़ता देखकर ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला संभलते देखकर राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए और श्रीराम के चरणों मे आ गिरे। तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि हनुमानजी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया है कि भक्ति की शक्ति सैदेव आराध्य की ताकत बनती है तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान से भी बड़ा रहता है।इस प्रकार हनुमानजी ने राम नाम के सहारे श्री राम को भी हरा दिया। धन्य है राम नाम और धन्य धन्य है प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान।"जिस सागर को बिना सेतु के, लांघ सके न राम। कूद गए हनुमान जी उसी को, लेकर राम का नाम। तो अंत में निकला ये परिणाम कि राम से बड़ा राम का नाम"जय श्री राम जी
जय श्री हनुमान जी

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Friday 27 April 2018

हनुमान बाहुक पाठ /Hanuman Bahuk


छप्पय
सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ॥१॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन ।
उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट ॥२॥

झूलना
पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो ।
बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो ।
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ॥३॥

घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो ॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।
बल कैंधो बीर रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो ॥४॥

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ॥
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूतें घाटि नभ तल भो ।
नाई-नाई-माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जो हैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥५॥

गो-पद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक पर पुर गल बल भो ।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ॥
संकट समाज असमंजस भो राम राज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा की बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो ॥६॥

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान दावन परावन को दुर्ग भयो, महा मीन बास तिमि तोमनि को थल भो ॥
कुम्भकरन रावन पयोद नाद ईधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ॥७॥

दूत राम राय को सपूत पूत पौनको तू, अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन लखन प्रिय प्राण सो ॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥८॥

दवन दुवन दल भुवन बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को ।
पाप ताप तिमिर तुहिन निघटन पटु, सेवक सरोरुह सुखद भानु भोर को ॥
लोक परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास। नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को ॥९॥

महाबल सीम महा भीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस कठोर तनु जोर परै रोर रन, करुना कलित मन धारमिक धीर को ॥
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरन हार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ॥१०॥

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि हर, मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु पोषिबे को हिम भानु भो ॥
खल दुःख दोषिबे को, जन परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक दुदान भो ।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ॥११॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को ।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ॥१२॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी ।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ॥
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक ज्यों पालि हैं कृपालु मुनि सिद्धता को, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ॥१३॥

करुनानिधान बलबुद्धि के निधान हौ, महिमा निधान गुनज्ञान के निधान हौ ।
बाम देव रुप भूप राम के सनेही, नाम, लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ॥
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक बेद बिधि के बिदूष हनुमान हौ ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ॥१४॥

मन को अगम तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं ।
देवबंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ।
बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ॥१५॥

सवैया
जान सिरोमनि हो हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ॥
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहां तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तैं आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तो हिय हारो ॥१६॥

तेरे थपै उथपै न महेस, थपै थिर को कपि जे उर घाले ।
तेरे निबाजे गरीब निबाज बिराजत बैरिन के उर साले ॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले ।
बूढ भये बलि मेरिहिं बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ॥१७॥

सिंधु तरे बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवासे ।
तैं रनि केहरि केहरि के बिदले अरि कुंजर छैल छवासे ॥
तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानरबाज ! बढ़े खल खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवासे ॥१८॥

अच्छ विमर्दन कानन भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन से कुञ्जर केहरि वारो ॥
राम प्रताप हुतासन, कच्छ, विपच्छ, समीर समीर दुलारो ।
पाप ते साप ते ताप तिहूँ तें सदा तुलसी कह सो रखवारो ॥१९॥

घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यो जन, मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिये ।
सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये ॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भान्ति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ॥२०॥

बालक बिलोकि, बलि बारें तें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो विचारिये ॥
बड़ो बिकराल कलि काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को निहारि सो निबारिये ।
केसरी किसोर रनरोर बरजोर बीर, बाँह पीर राहु मातु ज्यौं पछारि मारिये ॥२१॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो संबारिये ।
राम के गुलामनि को काम तरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ॥
साहेब समर्थ तो सों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यों पकरि के बदन बिदारिये ॥२२॥

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे, जीव जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै विचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात घात ही मरोरि मारिये ॥२३॥

लोक परलोकहुँ तिलोक न विलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखिअत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहूसूल कपिकच्छु बेलि, उपजी सकेलि कपि केलि ही उखारिये ॥२४॥

करम कराल कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बक भगिनी काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहू बल बालक छबीले छोटे छरैगी ॥
आई है बनाई बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सब को गुनी के पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपि कान्ह तुलसी की, बाँह पीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ॥२५॥

भाल की कि काल की कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ॥
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ॥२६॥

सिंहिका सँहारि बल सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बार बार, जातुधान धारि धूरि धानी करि डारी है ॥
तोरि जमकातरि मंदोदरी कठोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ॥२७॥

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र रवि राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोक पाल सब, तेरो नाम लेत रहैं आरति न काहु की ॥
साम दाम भेद विधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ॥२८॥

टूकनि को घर घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नत पाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ॥
इतनो परेखो सब भान्ति समरथ आजु, कपिराज सांची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि कोसो है ॥२९॥

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधीकाति है ॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ॥३०॥

दूत राम राय को, सपूत पूत वाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के धाय को ॥
एते बडे साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ॥३१॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाग, राम दूत की रजाई माथे मानि लेत हैं ॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ॥३२॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर घर के ।
तेरे बल राम राज किये सब सुर काज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरिहर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीस नाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ॥३३॥

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अव डेरिये ॥
अँबु तू हौं अँबु चूर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ॥३४॥

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनाई है ॥
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूंकि फौंजै ते उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ॥३५॥

सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ॥
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ॥३६॥

घनाक्षरी
काल की करालता करम कठिनाई कीधौ, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ॥३७॥

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुंह पीर, जर जर सकल पीर मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ॥
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारे हीतें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ॥३८॥

बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि, मुँह पीर केतुजा कुरोग जातुधान है ।
राम नाम जप जाग कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है ॥
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दौऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है ।
तुलसी सँभारि ताडका सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाई बानवान है ॥३९॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक हौं ।
परयो लोक रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ॥
खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ॥४०॥

असन बसन हीन बिषम बिषाद लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ॥४१॥

जीओ जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुर सरि को ।
तुलसी के दोहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँऊ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ॥
मो को झूँटो साँचो लोग राम कौ कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ॥४२॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ॥
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि की जै तुलसी को जानि जन फुर कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ॥४३॥

कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ॥
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहें साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं, हौं हूँ रहों मौनही वयो सो जानि लुनिये ॥४४॥

Glory of Hanuman jee

हनुमानजी  सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं.सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं. जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती, हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है. वे खुद की शक्ति से संचालित होते हैं.
वे इतने शक्तिशाली होने के बावजूद ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हैं,वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और आज भी सशरीर हैं. इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी. महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती.

~ God! God! God ! ~ from Songs of the Soul by Paramahansa Yogananda

Yes & No

"Say yes to life. And if one is aware, then one will be surprised that many times we unnecessarily say no... And we harm nobody except ourselves by saying that. No is fear-oriented; yes is love.

When you say yes, you are in a loving mood; whenever you are in a loving mood, you say yes - they both go together. When you say no, you reject life, and when you reject life, life rejects you. Then one becomes more and more sour, more and more bitter, and then there is a vicious circle. When you are bitter you say no more; when you say no more, life goes on rejecting you. In fact it is not life that rejects you; it is your rejection that is reflected by life. It is your no that resounds back to you.

Life is a mirror - it simply mirrors. If you say yes to it, it says yes. If you sing a song, it sings a song. If you are ready to dance with it, it dances with you. It all depends on you: life simply goes on echoing you - so never blame life. Life is absolutely innocent, as innocent as a mirror. Change your face; the mirror is never at fault. If you don't look beautiful in the mirror don't try to destroy the mirror - change your face.

That's what I mean: when you start saying yes you start changing your face - from fear to love, from rejection to acceptance. And that is the real transformation."
~Osho~

Inspirational Quotes by Sister Shivani jee


(Pictures courtsey google)

Thursday 5 April 2018

हनुमान जी का आशीर्वाद 

यदि किसी भी भक्त से हनुमान जी प्रसन्न हो जाएं तो अपने भक्त को किसी भी चीज की कोई कमी या कोई भी समस्या नहीं होने देते। हनुमान जी को यदि कोई प्रसन्न कर लेता है तो समझ लीजिए की उसके जीवन की नैय्या पार लग जाती है। तो चलिए अब आप भी जान लीजिए हनुमान जी को प्रसन्न करने का एक ऐसा तरीका जिसकी मदद से आप भी हनुमान जी का आशीर्वाद पा सकते हैं।इसके लिए आप हनुमान चालीसा की इन चौपाइयों का जाप करें।

“भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जब नाम सुनावै”

इस चौपाई का मंगलवार के दिन सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर या फिर सांयकाल के समय सूर्यास्त के बाद इस चौपाई का 108 बार जाप करें। यह आपको हर क्षेत्र में सफलता दिलाएगा।
“नाशै रोग हरै सब पीड़ा जपत निरंतर हनुमत बीड़ा”
लंबे समय से चली आ रीह कोई बड़ी बीमारी या फिर परीक्षा में परेशानी की वजह को सुलझाने में यह चौपाई काम आती है। इसका जाप भी ऊपर दिए 
तरीके के अनुसार ही करें।

“अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बीर दीन जानकी माता” 

हनुमान चालीसा की यह वो चमत्कारी चौपाई है जो आपको परेशानियों से लड़ने की शक्ति देती है। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद 108 बार जाप करें।

“विद्या बाण गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर”

बिना ज्ञान और बुद्धि के संसार में कुछ भी पाना संभव नहीं है। ऐसा व्यक्ति हमेशा ही गरीबी और उपेक्षा का शिकार होता है। विद्या बुद्धि प्राप्ति के लिए सुबह स्नान के बाद 108 बार इस चौपाई का जाप करें।

दर्शन दो हनुमानजी

🙏निश्चय परेम पृतीत से विनय करें सनमान।
तेहि के का रज सकलशुभ सिद्धि करें हनुमान।
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!
!! जय श्री राम !! जय जय हनुमान !!

हनुमान जी के दर्शन पाने के लिए अक्सर लोग मंगलवार के व्रत रखना और न जाने क्या-क्या टोटके करते हैं।लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से हनुमान जी सपनों में दर्शन देते हैं या फिर किसी अन्य रूप में आपको अपनी मौजूदगी का अहसास करवा सकते हैं।लेकिन यह कार्य थोड़ा सा कठिन है लेकिन यदि आपमें सच्ची मेहनत औऱ लगन है तो इस अनुष्ठान को आसानी से कर सकते हैं।गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक में बताया गया है। इस उपाय को हनुमान जयंती या किसी अन्य शुभ दिन से शुरू करें, तो विशेष फल प्राप्त होता है। इस उपाय को करते समय सबसे पहले आपको ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होगा। साथ ही, नाखून काटना, बाल या दाड़ी कटवाना, शराब व मांस का सेवन भी निषेध है।किसी अन्य शुभ दिन या फिर हनुमान जयंती का दिन हो तो और भी शुभ है। इस दिन स्नानादि करने के बाद एक लोटा जल लेकर हनुमानजी के मंदिर जाएं। उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं। पहले दिन एक दाना साबूत उड़द का हनुमानजी के सिर पर रखकर 11 परिक्रमा करें।परिक्रमा के बाद अपनी इच्छा को हनुमानजी के सामने कहें और वह उड़द का दाना लेकर घर लौट आएं। इसके बाद उसे अलग रख दें।दूसरे दिन से एक-एक उड़द का दाना रोज़ बढ़ाते रहें और इसी तरह हनुमानजी की परिक्रमा करते रहें। आपको ऐसा 41 दिन तक करना है। 42 वे दिन से एक-एक दाना कम करते रहे। जैसे 42 दिन 40, 43 वे दिन 39 और 81 वें दिन 1 दाना।माना जाता है कि 81 दिन पूरे होने पर हनुमानजी सपने में दर्शन देते हैं व साधक की मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद भी देते हैं।ध्यान रहे कि इस अनुष्ठान के दौरान जितने भी उड़द के दाने आपने हनुमानजी को चढ़ाएं हो उन्हें नदी के जल में प्रवाहित कर दें।

🌺हनुमान जैसे राम अनुरागी🌺

🌻🌻जय श्री सीताराम जी 🌻🌻
🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸🌹🌸

माता सीता ने पूछा-- हनुमान! भूख लगी है, तो रास्ते में कुछ खाने को नहीं मिला, कोई खिलाने वाला नहीं मिला? हनुमान जी ने कहा -- माता ! जितने मिले, सब खाने वाले ही मिले। सुरसा, सिंहिका, लंकिनी सब खाने वाली थीं, खिलाने वाला कोई नहीं मिला। यहाँ लंका में भी सब खाने को तैयार। सीता माता ने कहा- तो तुम कह देते, तुम्हारे राजा से शिकायत कर देंगे । हनुमान ने कहा -- कहा था माता, पर वे बोले-- खूब करो शिकायत, हम तो उन्हीं के सहारे खाते हैं। कहा कैसे? बोले-- हम तो एक ही मुख से खाते हैं, हमारे राजा के तो दस मुख हैं, वे तो दस मुख से खाते हैं। अब जिसका राजा दस मुख से खाता हो, उसके कर्मचारी क्या एक मुख से भी नहीं खायेंगे?
माता सीता ने कहा-- अच्छा छोड़ो। यह बताओ, लंका में तुम आये, तो उछल कूद कर कहीं से भी कुछ खा लेते, यहाँ कौन तुम्हारे लिए भोजन लेकर बैठा है जो कहेगा , पधारो श्रीमान भोजन करो। हनुमान जी ने कहा-- माता ! खा तो लेता , पर हमारे खाने लायक कोई वस्तु लंका में थी ही नहीं
यहाँ तो--

कहिं महिष मानुष धेनु खर अज
खल निसाचर भच्छहीं।

रावण के राज्य में भैंसा, मनुष्य, गाय, गधा, बकरे आदि खाने की खुली छूट है और फलाहार पर पाबंदी है । फल खाने पर रोक लगा रखी है, और यही हमारा भोजन है । यहाँ अशोक वाटिका में पहरेदार बिठा रखे हैं कि खबरदार फलाहार कोई नहीं करेगा। सीता माता ने कहा कि यहाँ तो राक्षस रखवाली कर रहे हैं। हनुमान जी बोले-- माता ! उनकी चिंता नहीं है, अगर आपका आशीर्वाद मिल जाय तो।

देखि बुद्धि बल निपुन कपि
कहेउ जानकी जाहु ।

सीता माता ने बुद्धि और बल देखा, सुरसा ने -- तुम बल बुद्धि निधान- - सुरसा के पास हनुमान जी पहले बड़े थे फिर छोटे हुए, इसलिए बल पहले बुद्धि बाद में और सीता माता के पास पहले छोटे होकर गये बाद में बड़ा रूप दिखाया, इसलिए बुद्धि पहले बल बाद में-- देखि बुद्धि बल निपुन कपि।
सीता माता ने कहा -- तो एक काम करो।•••क्या?

रघुपति चरन हृदय धरि
तात मधुर फल खाहु।।

भगवान के चरणों को हृदय में धारण करो और यही बात हनुमान जी ने भी रावण से कही--

राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राज तुम्ह करहू।।
🌺

किसी ने तुलसीदास जी से पूछा कि हनुमान ने स्वयं भगवान के चरणों को हृदय में धारण किया और रावण से भी कहा-- राम चरन पंकज उर धरहू, ऐसा क्यों? तुलसीदास जी ने बहुत अच्छा उत्तर दिया--

हनूमान सम नहिं बड़भागी।
नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।।

हनुमान जी के समान श्रीराम जी के चरणों का अनुरागी कोई नहीं है ।

गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई ।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।

🌺श्रीराम जय राम जय जय राम🌺

Wednesday 4 April 2018

Chanting the lords name

Chant....let us chant his name......... and our tears will become little droplets of love...as we melt.. the hard layers of our ego erasing all its unrepentant sins,...and be reborn with a new pure heart full of righteousness,nurtured by his loving touch

श्री हनुमत प्रश्नावली यंत्र से जाने अपनी समस्याओं का समाधान

श्री हनुमत प्रश्नावली यंत्र से जाने अपनी समस्याओं का समाधान ~🙏
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हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्र(चक्र)के बारे में बताया गया हैं जिनकी सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। हम अब तक आपको श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र और नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र के बारे में बता चुके है आज हम आपको बताएँगे हनुमान प्रश्नावली चक्र के बारे में।

प्रयोग विधि
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जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करे और पांच बार ऊँ रां रामाय नम:मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ हनुमते नम:मंत्र का जप करे। इसके बाद आंखें बंद हनुमानजी का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें। कोष्ठकों के अंकों के अनुसार फलादेश

1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।

2- आपके कार्य में समय लेगगा। मंगलवार का व्रत करें।

3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।

4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।

5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।

6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।

7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।

8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।

9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।

10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।

11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।

12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।

13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।

14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार को गाय को गुड़-चना खिलाएं।

15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।

16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बालकाण्ड का पाठ करें।

17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊँ हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जप करें।

18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।

19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।

20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।

21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला रोज करें।

22- अभी कठिनाइयों का सामाना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।

23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।

24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।


25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।

26- हर काम सोच-समझकर करें।

27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।

28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।

29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।

30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।

31- संतान का सुख प्राप्त होगा। शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।

32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डवस्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मण को भोजन कराएं।

33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।

34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार को व्रत रखें।

35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा को व्रत रख कथा कराएं।

36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।

37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।

38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।

39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।

40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जप करें।

41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।

42- समय अभी अच्छा नहीं है।

43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।

44- आपको धन की प्राप्ति होगी।

45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।

46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।

47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।

48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।

49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।

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(Photo courtsey Google )

Ram chanting

राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।

राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम।  एक बार हनुमान जी ऋष्यमूक पर्वत की एक बहुत ऊंची चोटी पर बैठे हुए थे। उसी समय भगवान श्रीराम चंद्र जी सीता जी की खोज करते हुए लक्ष्मण जी के साथ ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुंचे।  ऊंची चोटी पर से वानरों के राजा सुग्रीव ने उन लोगों को देखा। उसने सोचा कि ये बाली के भेजे हुए दो योद्धा हैं, जो मुझे मारने के लिए हाथ में धनुष-बाण लिए चले आ रहे हैं।

दूर से देखने पर ये दोनों बहुत बलवान जान पड़ते हैं। डर से घबरा कर उसने हनुमान जी से कहा, ‘‘हनुमान! वह देखो, दो बहुत ही बलवान मनुष्य हाथ में धनुष-बाण लिए इधर ही बढ़े चले आ रहे हैं। लगता है, इन्हें बाली ने मुझे मारने के लिए भेजा है। ये मुझे ही चारों ओर खोज रहे हैं। तुम तुरंत तपस्वी ब्राह्मण का रूप बना लो और इन दोनों योद्धाओं के पास जाओ तथा यह पता लगाओ कि ये कौन हैं और यहां किसलिए घूम रहे हैं। अगर कोई भय की बात जान पड़े तो मुझे वहीं से संकेत कर देना। मैं तुरंत इस पर्वत को छोड़कर कहीं और भाग जाऊंगा।’’

सुग्रीव को अत्यंत डरा हुआ और घबराया देखकर हनुमान जी तुरंत तपस्वी ब्राह्मण का रूप बनाकर भगवान श्रीरामचंद्र और लक्ष्मण जी के पास जा पहुंचे। उन्होंने दोनों भाइयों को माथा झुकाकर प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘प्रभो! आप लोग कौन हैं? कहां से आए हैं? यहां की धरती बड़ी ही कठोर है। आप लोगों के पैर बहुत ही कोमल हैं। किस कारण से आप यहां घूम रहे हैं? आप लोगों की सुंदरता देखकर तो ऐसा लगता है-जैसे आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई हों या नर और नारायण नाम के प्रसिद्ध ऋषि हों। आप अपना परिचय देकर हमारा उपकार कीजिए।’’

हनुमान जी की मन को अच्छी लगने वाली बातें सुनकर भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपना और लक्ष्मण का परिचय देते हुए कहा कि, ‘‘राक्षसों ने सीता जी का हरण कर लिया है। हम उन्हें खोजते हुए चारों ओर घूम रहे हैं। हे ब्राह्मण देव! मेरा नाम राम तथा मेरे भाई का नाम लक्ष्मण है। हम अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र हैं। अब आप अपना परिचय दीजिए।’’

भगवान श्रीरामचंद्र जी की बातें सुनकर हनुमान जी ने जान लिया कि ये स्वयं भगवान ही हैं। बस वह तुरंत ही उनके चरणों पर गिर पड़े। श्री राम ने उठाकर उन्हें गले से लगा लिया। हनुमान जी ने कहा, ‘‘प्रभो! आप तो सारे संसार के स्वामी हैं। मुझसे मेरा परिचय क्या पूछते हैं? आपके चरणों की सेवा करने के लिए ही मेरा जन्म हुआ है। अब मुझे अपने परम पवित्र चरणों में जगह दीजिए।’’

भगवान श्री राम ने प्रसन्न होकर उनके मस्तक पर अपना हाथ रख दिया। हनुमान जी ने उत्साह और प्रसन्नता से भरकर दोनों भाइयों को उठाकर कंधे पर बैठा लिया। सुग्रीव ने उनसे कहा था कि भय की कोई बात होगी तो मुझे वहीं से संकेत करना। हनुमान जी ने राम लक्ष्मण को कंधे पर बिठाया-यही सुग्रीव के लिए संकेत था कि इनसे कोई भय नहीं है। उन्हें कंधे पर बिठाए हुए ही वह सुग्रीव के पास आए और उनसे सुग्रीव का परिचय कराया।  भगवान श्री राम ने सुग्रीव के दुख और कष्ट की सारी बातें जानीं। उसे अपना मित्र बनाया और दुष्ट बाली को मार कर उसे किष्किंधा का राजा बना दिया। इस प्रकार हनुमान जी की सहायता से सुग्रीव का सारा दुख दूर हो गया।

(लेखिका~ ज्योति अग्रवाल जी)

हनुमान पूजा

घर पर हनुमान पूजा कैसे करें

मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। हनुमान जी यानि बल-बुद्धि और कौशल के दाता, श्री राम जी के परम भक्त और भगवान शिव के रुद्रावतार। हनुमान जी को सदा से साहस और वीरता से जोड़कर देखा जाता है।

हनुमान पूजा विधि

अगर आपको रात को डरावने सपने आते हैं, शनिदेव की पीड़ा के कारण समस्या हो या किसी के नजर लगने का डर हो तो भगवान हनुमान जी की सच्चे हृदय से पूजा करना आपके लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। आइये आज जानें कि किस तरह आप हनुमान जी की घर पर ही पूजा कर पूर्ण लाभ उठा सकते हैं।

हनुमान जी की पूजा विधि

हनुमान जी की पूजा प्रतिदिन तो करनी ही चाहिए लेकिन मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए। अगर संभव हो सके तो जातक को 21 मंगलवार का व्रत रखना चाहिए। मंगलवार के दिन प्रात: काल स्नान आदि के पश्चात भगवान हनुमान जी की मूर्ति या प्रतिमा को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।

लाल रंग का इस्तेमाल

पूजा के लिए लाल रंग के फूल और घी या तिल के तेल के दीपक को उपयोग में लाना चाहिए। हनुमान जी के समक्ष दीपक लगाने के बाद आरती, हनुमान चालीसा या बजरण बाण का यथासंभव पाठ करना चाहिए।

भोग का प्रसाद

पाठ के बाद भगवान को भोग लगाना चाहिए। मंगलवार के दिन हनुमान जी को विशेष रूप से सिंदूर और लाल मिष्ठान प्रसाद स्वरूप अवश्य चढ़ाने चाहिए।

किस दिशा में रखें हनुमान जी की मूर्ति

वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी की प्रतिमा घर में ऐसे लगानी चाहिए कि उनकी दृष्टि दक्षिण दिशा की तरफ हो। हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माने जाते हैं इसलिए इनकी तस्वीर या प्रतिमा युगल दंपतियों के कमरे में नहीं लगानी चाहिए।

शुभ तस्वीर

अगर बेडरूम के मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा लगानी हो तो जब पूजा ना हो तो मंदिर के दरवाजे बंद रखने चाहिए। घर में हनुमान जी की श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ वाली तस्वीर लगाना शुभ माना जाता है।

यहाँ लगाए

यह तस्वीर हनुमान जी के भक्तिभाव को दर्शाती है। इसके अलावा ध्याम मुद्रा में बैठे हनुमान जी या राम-लक्ष्मण जी को कंधे पर बिठाकर उड़ते हुए हनुमान जी की फोटो भी आप लगा सकते हैं।

हनुमान जी के कुछ आसान मंत्र

ऊं हं हनुमते नम:, ऊं पवनपुत्राय नम:, ऊं रामदूताय नम: आदि कुछ हनुमान जी के आसान मंत्र हैं। इनमें से किसी भी एक मंत्र का मंगलवार के दिन 108 बार जाप करने की कोशिश करनी चाहिए।

हनुमान पाठ

मंत्रों को इसके अतिरिक्त हनुमान चालीसा के गुणों का गुणगान तो आपने भी कई बार सुना होगा। यह हनुमान जी से संबंधित सबसे प्रभावशाली मंत्र माना जाता है। भय मुक्ति के लिए इस मंत्र का नियमित जाप अवश्य करना चाहिए।

हनुमान चालीसा

श्रीहनुमान चालीसा का अगर पूरा पाठ ना कर सकें तो इसकी एक भी चौपाई का पाठ हनुमान कृपा पाने का सबसे सहज और प्रभावी उपाय माना जाता है। निरंतर एक सौ आठ दिन तक हनुमान चालीसा का पाठ करने से कई परेशानियों का अंत हो जाता है। इसके अतिरिक्त बजरंग बाण को भी एक चमत्कारी मंत्र माना जाता ह ऐ।

ध्यान देने योग्य बातें

हनुमान जी की पूजा में कुछ विशेष बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। हनुमान जी की पूजा तभी सफल मानी जाती है जब आप पहले श्री राम जी का स्मरण करें। हनुमान जी की पूजा से पहले सिया राम जी का अवश्य ध्यान लगाएं।

इस समय करें पूजा

हनुमान जी की पूजा संध्या काल या सूर्यास्त के बाद में ही करना शुभ माना जाता है। हनुमान जी की पूजा करते समय मन में वासनमयी विचारों को नहीं लाना चाहिए। पवित्रता हनुमान जी की पूजा में बेहद जरूरी है।

पूर्णिमा का उपाय

मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन हनुमानजी को तिल का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने (सिन्दूर को घी, तिल के तेल या चमेली के तेल में घोलकर लेप करने को चोला चढ़ाना कहते हैं) या लाल फूल अर्पित करने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है।

नारियल अर्पित करें

हनुमान जी को नैवैद्य के रूप में नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू, केले, अनार, आम, लड्डू या बूंदी अर्पित करने चाहिए। भगवान को दिए गए नैवैद्य को प्रसाद के रूप में अवश्य ग्रहण करें।

पूरी विधि

तो यह थी हनुमान जी की पूजा अर्चना से जुड़ी आवश्यक जानकारी जिसके द्वारा आप स्वयं घर पर पूजा कर हनुमान जी की कृपा का फल पा सकते हैं। तो इसी मंगलवार से शुरु कीजिएं अंजनी पुत्र हनुमान जी की वंदना

(ज्योति अग्रवाल जी द्वारा लिखित लेख )

     राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम।

Tuesday 3 April 2018

What happens after death?  Described well in Garuda Puraan

 

*What Happens After Death ??*

What is death ?

Is there life after death ?

Is death painful?

What happens after death ?

How does rebirth happen ?

Where do we go after death ?

These kind of questions related to the most feared event that ends our life always fill our mind, especially when any of our near or dear ones die.

We feel that suddenly the relationship has broken abruptly n wish there could be a connection again. In this quest, our journey to find answers to the above questions begin ...

*So, what happens after death ?*

Death is actually a very interesting process !!

*Disconnection of the earth sole chakras*

Approximately 4-5 hours before death, the earth sole chakras situated below the feet gets detached ... symbolizing disconnection from the earth plane !!

A few hours before an individual dies, their feet turn cold. When the actual time to depart arrives, its said that Yama, the God of death appears to guide the soul.

*The Astral Cord*

Death severs the astral cord, which is the connection of the soul to the body. Once this cord is cut the soul becomes free of the body n moves up n out of the body.

If the soul is attached to the physical body it occupied for this lifetime, it refuses to leave n tries to get into the body n move it n stay in it. We may observe this as a very subtle or slight movement of the face, hand or leg after the person has died.

The soul is unable to accept that it is dead. There is still a feeling of being alive. Since the astral cord has been severed, the soul cannot stay here n is pushed upwards n out of the body. There is a pull from above ... a magnetic pull to go up.

*End of the physical body*

At this stage the soul hears many voices, all at the dame time. These are the thoughts of all the individuals present in the room.

The soul on its part talks to his loved ones like he always did n shouts out "I am not dead" !!

but alas, nobody hears him.

Slowly n steadily the soul realizes that it is dead n there is no way back n at this stage, the soul is floating at approx 12 feet or at the height of the ceiling, seeing n hearing everything happening around.

Generally the soul floats around the body till it is cremated.

So, the next time if you see a body being carried for cremation, be informed that the soul is also part of the procession seeing, hearing n witnessing everything n everyone.

*Detachment from the body*

Once the cremation is complete, the soul is convinced that  the main essence of its survival on earth is lost n the body it occupied for so many years has merged into the five elements.

The soul experiences complete freedom, the boundaries it had while being in the body are gone n it can travel anywhere by mere thought.

For 7 days the soul, moves about its places of interest like its favorite joint, morning walk garden, office, etc..If the soul is possessive of his money, it will just stay near his cupboard, or if he is possessive of his children, it will just be in their room, clinging on to them.

By the end of the 7th day, the soul says bye to his family n moves further upwards to the periphery of the earth plane to cross over to the other side.

*The Tunnel*

Its said that there is a big tunnel here which it has to cross before reaching the astral plane. Hence its said that the first 12 days after death are extremely crucial.

*we have to carry out the rituals correctly n pray n ask forgiveness from the soul* so that it does not carry negative emotions like hurt, hatred, anger, etc atleast from the near n dear ones.

All the rituals, prayers n positive energy act like food for the soul which will help it in its onward journey. At the end of the tunnel is a huge bright light signifying the entry into the astral world.

*Meeting the Ancestors*

On the 11th n 12th day Hindus conduct homas n prayers n rituals through which the soul is united with its ancestors, close friends, relatives n the guides.

All the passed away ancestors welcome the soul to the upper plane n they greet n hug them exactly like we do here on seeing our family members after a long time.

The soul then along with its guides are taken for a thorough life review of the life just completed on earth in the presence of the *Great Karmic Board.* It is here in the pure light that the whole past life is viewed !!

*Life Review*

There is no judge, there is no God here. The soul judges himself, the way he judged others in his lifetime. He asks for revenge for people who troubled him in that life, he experiences  guilt for all wrongdoings he did to people n asks for self punishment to learn that lesson. Since the soul is not bound by the body n the ego, the final judgment becomes the basis of the next lifetime.

Based on this, a complete life structure is created by the soul himself, called the blue print. All the incidents to be faced, all problems to be faced, all challenges to be overcome are written in this agreement.

In fact the soul chooses all the minute details like age, person n circumstances for all incidents to be experienced.

Example : An individual had severe headache in his present birth, nothing helped him, no medicines, no way out. In a session of past life regression, he saw himself killing his neighbour in a previous birth by smashing his head with a huge stone.

In the life review, when he saw this he became very guilty n asked for the same pain to be experienced by him by way of a never ending headache in this life.

*Blue print*

This is the way we judge ourselves n in guilt ask for punishment. The amount of guilt in the soul decides the severity of the punishment n level of suffering. Hence forgiveness is very vital. We must forgive n seek forgiveness !!

Clear your thoughts n emotions, as we carry them forward to the other side too. Once this review is done n our blue print for the next life is formed, then there is a cooling period.

*The re-birth*

We are born depending on what we have asked for in the agreement. The cooling off period also depends on our urgency to evolve.

We choose our parents n enter the mothers womb either at the time of egg formation or during the 4-5th month or sometimes even at the last moment just before birth.

The universe is so perfect ,so beautifully designed that the time n place of birth constitutes our horoscope, which actually is a blue print of this life. Most of us think that our stars are bad n we are unlucky but in actuality, they just mirror your agreement.

Once we are reborn, for around 40 days the baby remembers its past life n laughs n cries by itself without anyone forcing it to. The memory of the past life is completely cut after this n we experience life as though we did not exist in the past.

*The agreement starts..*

Its here that we are completely in the earth plane n the contract comes into full effect. We then blame God/ people for our difficult situations n curse God for giving us such a difficult life ...

So, the next time before pointing to the Divine, understand that our circumstances are just helping us complete n honor our agreement, which is fully n completely written by us. Whatever we have asked for n pre decided is exactly what we receive !!

Friends, relatives, foes, parents, spouses all have been selected by us in the blue print n come in our lives based on this agreement. They are just playing their parts n are merely actors in this film written, produced n directed by us !!

*Do the Dead need healing / prayers / protection ?*

The dead always need serious healing n prayers for a variety of reasons, the most important one being ... To be free n not earthbound !! ... that is stuck in the earth plane n unable to leave.

There are many reasons for the soul to be earthbound like unfinished business, excessive grief, trauma on death, sudden death, fear of moving on to the astral plane, guilt, one of the most important being improper finishing of last rites n rituals.

The soul feels it needs a little more time to wait n finish before moving on.  This keeps them hovering on the earth plane. But the time is limited n it is very very important that they cross over within 12 days to their astral plane of existence, as the entry to the astral world closes a few days after this.

Earthbound spirits lead a very miserable existence as they are neither in their actual plane nor in a body to lead an earthly life. They may not be negative or harmful but they are stuck n miserable. Hence healing n prayers are of utmost importance during this period so that the departed soul crosses over to the designated astral plane peacefully.

Prayers by the whole family is very vital to help the dead cross over. The protection of the soul to help it reach its destination in the astral world is achieved through prayers.

Please Do Not Take Death Lightly ... Now more than ever most souls are stuck on the earth plane due to lack of belief and family neglect.

Finally, for someone who has lost a near and dear one, don’t feel sad ... We never die, we live on, death does not end anything, it is just a little break before we meet again !!

This article has been extracted from ...

(The Garuda Puranam)
By
PRAKASH K. PATIL
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(Picture courtsey google)