Saturday, 16 August 2014

"शाहिदां दां खू"

चंडीगढ़। अमृतसर के समीप अजनाला गांव में मौजूद "कालों का कुआं"। अब ‘शहीदां दा खू’ के नाम से जाना जाता है। यह वहीं कुआं है जिसमें 1857 की क्रान्ति के दौरान अंग्रेजी फौजों ने 282 क्रान्तिकारियों को जिन्दा दफन कर दिया था। 2 मार्च 2014 यानि, 157 साल बाद जब इस कुएं की खुदाई की गई तो इस कुएं से एक बाद एक 283 क्रान्तिकारियोें के नरकंकाल मिले। "कालों का कुआं" अंग्रेजी हुकूमत की दरिंदगी की ऐसी खौफनाक दास्तान का गवाह बना, जिसे देख कर किसी के भी आंखों के आंसू नहीं थम सके।

स्थानीय गुरूद्वारा शहीदगंज प्रबंधन समिति की ओर से सिख इतिहासकारों की राय पर इस कुएं की खुदाई शुरू की गई थी। खुदाई करने वाले जैसे-जैसे इस कुएं की गहराई में जाते गए, वैसे-वैसे इस कुएं से शहीदों की अस्थियां मिलनी शुरू हुई। कुएं से खुदाई के दौरान न सिर्फ अस्थियां ही मिली बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी की मुहर वाले सिक्के और ज्वैलरी निकाली गई है। करीब दस दिन तक चली इस खुदाई में सभी शहीद सैनिकों की अस्थियां बरामद होने के बाद उन्हें हरिद्वार और गोइंदवाल साहिब में प्रवाहित किया गया।

एक समाचार वेबसाइट ने सिख इतिहासकार सुरिन्दर कोचर के हवाले से बताया है कि अगस्त 1857 में अमृतसर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हैनरी कूपर और कर्नल जेम्स जॉर्ज ने इस नरसंहार की योजना बनाई थी। कूपर ने अपनी पुस्तक "द क्राइसिस ऑफ पंजाब" में भी इस घटना का उल्लेख किया है। नरसंहार में मारे गए क्रान्तिकारी अंग्रेजों की बंगाल नेटिव इन्फेंट्री से संबंद्ध थे, जिन्होंने बगावत कर दी थी। इनमें से अंग्रेजी सेनाओं ने 150 को गोली मार दी, जबकि 283 सिपाहियों को रस्सियों से बांध कर अजनाला लाया गया और इस कुएं में फेंक दिया गया था। 

फोटो में देखें, कुएं की खुदाई के दौरान मिली शहीद सैनिकों की अस्थियों की तस्वीर